भीष्म पितामह शरशैय्या
जब श्रीकृष्ण शरशैय्या पर लेटे भीष्म पितामह से मिलने आये तब भीष्म ने उनसे प्रश्न पूछा.
हे केशव ! आप तो सर्वज्ञ हैं. भूत भविष्य सब जानते हैं. अतः कृपया कर बताइये, मुझे शरशैय्या का दारुण दुख किस कारण हेतु मिला ?.
हे माधव ! मुझे अपने 100 पूर्वजन्म याद हैं. मैंने कभी किसी का अहित नही किया. सदैव दुसरो की सहायता की पुण्य कर्म किये. फिर मुझे शरशैय्या की पीड़ा क्यों मिली ??.
श्रीकृष्ण:- हे वीरश्रेष्ठ पितामह ! हे कुरुश्रेष्ठ पितामह ! ये आपके 100 पूर्वजन्मों का फल नही हैं अपितु ये आपके 101 वें पूर्वजन्म के कर्मो का फल हैं. जिसमें भी आपने एक राजवंश में जन्म लिया था. तब आप एक राजकुमार थे.
एक दिन आखेट के दौरान आपके घोड़े के अग्रभाग पर वृक्ष से गिरकर एक करकेंटा आ गिरा. जिसे आपने बाण से उठाकर दूर फेंक दिया. जो पीठ के बल बेरिया(बेर) के वृक्ष पर गिर गया. पीठ के बल गिरने से बेरिया के कांटे करकेंटा की पीठ में शरीर के आरपार धँस गये.
असहनीय पीड़ा सहते हुए करकेंटा की 18 दिन पश्चात मृत्यु हो गई. किन्तु इस दौरान उसने आपको श्राप दिया:- जिसकी वजह से मुझे ये दारुण दुख प्राप्त हुआ. उसकी मृत्यु भी ऐसी ही हो. अतः उसके श्राप के फलस्वरूप आपको ये शरशैय्या मिली.
भीष्म:- हे मधुसूदन ! तो कृपया कर ये भी बताइये श्राप का फल मुझे 100 जन्मों उपरांत इसी जन्म में क्यों मिला ??..
श्रीकृष्ण:- हे श्रेष्ठ धनुर्धर पितामह ! आपने 100 पूर्वजन्म में कोई पापकर्म किया ही नही. सदैव पुण्य किया. अतः करकेंटा के श्राप का फल आप पर फलित नही हुआ. किन्तु इस जन्म में आपसे महापाप हुआ हैं.
आपके समक्ष भरे दरबार मे एक स्त्री(द्रोपदी) का चीरहरण होता रहा, किन्तु आप मौन रहे. उस पापकर्म को रोकने मे सक्षम, सामर्थ्यवान होते हुए भी आप मौन रहे पितामह ! आप मौन रहे !. इसी नारी अपमान के मौन पाप से आपके पूर्व 100 जन्मों के पुण्य क्षीण हो गए. अतः इस जन्म में वह श्राप प्रभावी हो कर फलित हो गया.
श्रीकृष्ण के वचन सुनकर भीष्म की जिज्ञासा शांत हो गई.
Note:
महाभारत के इस प्रसंग से स्पष्ट हैं सनातन में स्त्री सम्मान सदैव सर्वोच्च रहा हैं. भीष्म चीरहरण में शामिल नहीं थे, फिर भी मात्र मौन रहने से उनके समस्त पुण्य क्षीण हो गए. Copy
जब श्रीकृष्ण शरशैय्या पर लेटे भीष्म पितामह से मिलने आये तब भीष्म ने उनसे प्रश्न पूछा.
हे केशव ! आप तो सर्वज्ञ हैं. भूत भविष्य सब जानते हैं. अतः कृपया कर बताइये, मुझे शरशैय्या का दारुण दुख किस कारण हेतु मिला ?.
हे माधव ! मुझे अपने 100 पूर्वजन्म याद हैं. मैंने कभी किसी का अहित नही किया. सदैव दुसरो की सहायता की पुण्य कर्म किये. फिर मुझे शरशैय्या की पीड़ा क्यों मिली ??.
श्रीकृष्ण:- हे वीरश्रेष्ठ पितामह ! हे कुरुश्रेष्ठ पितामह ! ये आपके 100 पूर्वजन्मों का फल नही हैं अपितु ये आपके 101 वें पूर्वजन्म के कर्मो का फल हैं. जिसमें भी आपने एक राजवंश में जन्म लिया था. तब आप एक राजकुमार थे.
एक दिन आखेट के दौरान आपके घोड़े के अग्रभाग पर वृक्ष से गिरकर एक करकेंटा आ गिरा. जिसे आपने बाण से उठाकर दूर फेंक दिया. जो पीठ के बल बेरिया(बेर) के वृक्ष पर गिर गया. पीठ के बल गिरने से बेरिया के कांटे करकेंटा की पीठ में शरीर के आरपार धँस गये.
असहनीय पीड़ा सहते हुए करकेंटा की 18 दिन पश्चात मृत्यु हो गई. किन्तु इस दौरान उसने आपको श्राप दिया:- जिसकी वजह से मुझे ये दारुण दुख प्राप्त हुआ. उसकी मृत्यु भी ऐसी ही हो. अतः उसके श्राप के फलस्वरूप आपको ये शरशैय्या मिली.
भीष्म:- हे मधुसूदन ! तो कृपया कर ये भी बताइये श्राप का फल मुझे 100 जन्मों उपरांत इसी जन्म में क्यों मिला ??..
श्रीकृष्ण:- हे श्रेष्ठ धनुर्धर पितामह ! आपने 100 पूर्वजन्म में कोई पापकर्म किया ही नही. सदैव पुण्य किया. अतः करकेंटा के श्राप का फल आप पर फलित नही हुआ. किन्तु इस जन्म में आपसे महापाप हुआ हैं.
आपके समक्ष भरे दरबार मे एक स्त्री(द्रोपदी) का चीरहरण होता रहा, किन्तु आप मौन रहे. उस पापकर्म को रोकने मे सक्षम, सामर्थ्यवान होते हुए भी आप मौन रहे पितामह ! आप मौन रहे !. इसी नारी अपमान के मौन पाप से आपके पूर्व 100 जन्मों के पुण्य क्षीण हो गए. अतः इस जन्म में वह श्राप प्रभावी हो कर फलित हो गया.
श्रीकृष्ण के वचन सुनकर भीष्म की जिज्ञासा शांत हो गई.
Note:
महाभारत के इस प्रसंग से स्पष्ट हैं सनातन में स्त्री सम्मान सदैव सर्वोच्च रहा हैं. भीष्म चीरहरण में शामिल नहीं थे, फिर भी मात्र मौन रहने से उनके समस्त पुण्य क्षीण हो गए. Copy
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