Saturday, February 2, 2019

એક ઉત્તમ રચના હિન્દીમાં.

वो इस अंदाजकी मुजसे महोबत चाहता है,
मेरे हर ख्वाब पर अपनी हुकुमत चाहता है।

मेरे हर लफ्ज में जो बोलता हे मुजसे बढ कर,
मेरे हर लफ्ज की मुजसे वजाहत चाहता हे।

बहाना चाहिये उसको भी अब तर्के वफा का,
में खुद उससे करुं कोई शिकायत चाहता हे।

उसे मालुम है  मेरे परों में दम नही है,
मेरा सैयाद अब मुजसे बगावत चाहता है।

वो कहेता है में उसकी जरुरत बन चुका हुं,
तो गोया वोह मुजे हसबे जरुरत चाहता है।

कभी उसके सवालों से मुजे लगता है अयसे,
के जयसे वोह खुदा है ओर कयामत चाहता है।

उसे मालुम है मेने हमेशा सच लिखा है,
वोह फीरभी जुटकी मुजसे हीमायत चाहता है।
                             परवीन शाकिर

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